Sunday, April 25, 2010

aasaram bapu, swami nityanand


                        संत के लिए सब कुछ जायज है!     

                              


द्वारा सम्पादित:- अनिल कुमार 

शायद भक्तों ने उन्हें माफ कर दिया है। मीडिया भी उन पर न अब कुछ दिखा रहा है, न छाप। विरोधी समझौता कर चुके हैं। जनता ने उनके संत होने के रूतबे को बरकरार रखा है। आस्था जीत गई। अपराध और अपराधी विजयपर्व मना रहे हैं। बावजूद इसके, पता नहीं, शासन से लेकर प्रशासन, जनता से लेकर बुद्धिजीवि वर्ग तक सभी यह क्यों कहते हैं कि सच के साथ चलो। सच बोलो। सच लिखो। सच में विश्वास करो।
मैं यहां बात कर रहा हूं, परमपूजनीय कथावाचक संत आसाराम बापू की। और स्वामी नित्यानंद की जो आज भी अखबारों की सर्खियो में है 
परमपूजनीय कथावाचक संत आसाराम बापू  विरोध और विवाद के चलते वे अपनी छवि में आज भी उतने ही साफ और सफेद नजर आते हैं, जितना की अपने कपड़ों में। चेहरे या माथे पर कहीं कोई अपराध या अपराधबोध की लकीरें नहीं। कहीं तिरस्कार का भव नहीं। आज भी वे कथा कह रहे हैं और भक्त उनकी कथा में झूम-नाच रहे हैं। सब तरफ आनंद है।
दरअसल, वह संत हैं। साक्षात ईश्वर का दूसरा अवतार। भक्तों में प्रसिद्ध हैं। भला जो संत है, ईश्वर का दूसरा अवतार है, भक्तों में प्रसिद्ध है, उसकी छवि कैसी मटमैली हो सकती है? कभी नहीं। भला कोई कैसे अपने ईश्वर पर दुश्चरित्र होने का इल्जाम लगा सकता है? यकीनन भक्तों की अंध-भक्ति पर मेरा कुर्बान हो जाने को जी चाहता है। संत आसाराम बापू जब भी किसी शहर मै जाते हैं । बापू के भक्त बापू के प्रचार-प्रसार में अति-व्यस्त रहतो हैं । शहर के चौराहों पर बापू के बड़-बड़े होर्डिंग लगे होते हैं । बापू हाथ जोड़े नजर आते हैं । बापू आर्शिवाद देते नज़र आते हैं । बापू मुस्कुराते नज़र आते हैं । बापू को देखकर यह लग ही नहीं लगता की कि ये वहीं बापू हैं, जिन्हें मासूम बच्चों की हत्या और यौन-उत्पीड़िन के आरोपों में कई दिनों तक मीडिया और जन के विरोध का सामना करना पड़ा था। हमारा-आपका अपराध अपराध है, लेकिन संतों का अपराध अपराध नहीं। बाकई कमाल है।
बापू पर लगे इल्जाम बहुत गंभीर थे। उन पर अगर विस्तार और गहनता से जांच-पड़ताल होती, तो काफी सारी चीजें बाहर निकलकर आ सकती थीं। मगर एक हद के बाद मामला दब गया या दबा दिया गया। क्योंकि यह एक मशहूर संत से जुड़ा मामला था। संत अपराधी हो, भला भक्ति, भक्त और आस्था कैसे स्वीकार कर सकती है? संत संत ही रहेगा। पाकसाफ। पवित्र। दुखहंतः।
यह सब मैंने एक टी वी चैनल पर ही देखा था। एक पीड़ित लड़की कह-बता रही थी कि बापू और उनके बेटे ने कैसे-कैसे उसके साथ यौन-दुराचार किया। कई दिनों तक उक्त चैनल ने अपनी प्रसिधी बढ़ाने के लिए उस लड़की के 'कहे' को भुनाया। मगर उसमें कितना सच था और कितना झूठ, इसे जानने-समझने की जरूरत न उस चैनल ने समझी, न ही किसी और ने। बात आई गई हो गई। फिर सब कुछ सामान्य हो चला। अब न वाद है। न विवाद है। न इल्जाम है। न विरोध है। न अपराध है। न अपराधी।
चाहे जो हो, मगर बापू पर इल्जाम तो लगे ही थे। छवि तो धूमिल हुई ही थी। मगर आज उन्हें या उनके चेहरे पर कोई अपराधबोध नजर नहीं आता। पता नहीं हमारे देश में कानून कमजोर को दबाने के लिए ही क्यों बनाए जाते हैं? सिगरेट पीने पर पाबंदी लग रही है मगर...। बड़े-बड़े अपराधी उसमें से साफ निकल जाते हैं।
मैं कुछ गलत नहीं कह रहा धर्म और अंध-आस्था ने हमें न केवल अंधा कर दिया है, बल्कि नपुंसक भी बन दिया है। कितनी ताज्जुब की बात है कि आसाराम बापू पर इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी, भक्त उनकी भक्ति में पागल हैं। यह सब देखकर तो मुझे यही लगता है कि २१वीं सदी का मनुष्य १७वीं-१८वीं सदी से कहीं अधिक गंवार और बेअक्ल है ।
और अब देखते हैं की स्वामी नित्यानंद क्या रास्ता अपनाते हैं और उनके भक्त उन पर कितना विश्वास करते हैं। 
जिसके बारे मैं कई टी वि चेनल उनके करतूत दिखा चुके हैं । और you tube पर तो उनके क्लिप्स देखे नहीं ख़त्म नहीं होते 

पोस्टेड वाई anil.manali@gmail.com

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